नमस्कार

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Tuesday 18 February 2014

चाँद तन्हा है...

चाँद तन्हा है, आसमां तन्हा,
दिल मिला है कहाँ कहाँ तन्हा.

बुझ गयी आस, छुप गया तारा,
थरथराता रहा धुँआ तन्हा,
चाँद तन्हा है...

जिंदगी क्या इसी को कहते हैं ?
जिस्म तन्हा है और जां तन्हा,
चाँद तन्हा है...

हमसफ़र कोई गर मिले भी कहीं,
दोनों चलते रहे तन्हा तन्हा,
चाँद तन्हा है...

जलती बुझती सी रोशनी के परे,
सिमटा-सिमटा सा इक मकां तन्हा,
राह देखा करेगा सदियों तक,
छोड़ जायेंगे ये जहाँ तन्हा,
चाँद तन्हा है...

...मीनाकुमारीने लिहिलेली दर्दभरी गझल तिच्याच दर्दभऱ्या आवाजात...


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